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लेखनी कहानी -04-Mar-2024

         अंगडाई

ये बेचैन मन को अपनी अनुभुति से आराम करने की सोगात रखती है। तरुणाई से घबराकर अपनी बुती से वो आलस्य पर ओकात रखती है गलती क्यों की जनाव भलाई से अब सजा भुगतो अपनी अंगडाई से मजा तो तुम्हे बहुत आया होगा पाकर मेरी ही परछाई को। सजा रजा है मजा दिला गयी होगी छाकर आसमान भी शरमाया होगा पळती निगाहों की नजर को परछाई से वो रजा मन्दी बन चली अपनी अंगडाई

गळती की तूने आज जाने अनजाने में तरसती थी वो तेरी परछाई पाने में खामोश रही वो तेरे खातिर वरना शातिर मन को मजा आता उसे भगाने में अरे! गलती तेरी आलस्य संग चली अपनी अंगाई से वो तरुणाई बन गरमाई अपनी अंगड़ाई से कड़ी कशमकश के बाद पसीना आता है । अरे गधे! फिर कौन कामचोरी से हमीना बुलाता है। वो तो तेरा पागलपन था पगले अब तो भगले खामोश होकर वक्त से तख्त पर करीश्मा बुलाता है। कलम की गरमी स्याही बन गरमाई थी तेरी करुणाई आज आलस्य की कैसी भगाई थी हवा-हवाई से पगडंडी लाग चली थी कागज-कलम नही दिल की दवान रखी थी रूप तेरा मस्ताना है यही बताने की नीव जली है। बिडी जलाई ले जलन जिया यही नजर टली थी ।

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4 Comments

Varsha_Upadhyay

14-Mar-2024 07:15 PM

Nice

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Mohammed urooj khan

06-Mar-2024 12:37 PM

👌🏾👌🏾👌🏾

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hema mohril

05-Mar-2024 09:10 PM

Awesome

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